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'खुला पत्र' डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकरजी को मानाने वाले सभी भाई-बहिनो को - Monik Akela
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'खुला पत्र' डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकरजी को मानाने वाले सभी भाई-बहिनो को - Monik Akela
(सभी भाई-बहिनों कृपया गौर करे-पढ़े)
'खुला पत्र'
सेवामे,
डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकरजीको ,
मानाने वाले सभी भाई-बहिनोको ,
सप्रेम जयभीम.
दस-पंधरह दिनोसे हम देखा रहे है की टी.व्ही. और आखबारोमे आन्ना और लोकपाल के शिवा दूसरा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है ! हर शहर मे अन्ना के समर्थन मे जो लोग उतरते है भले ही पांच-दस लोग क्यों न हो उन्हे ही दिखाया जाता है! आज हमारे कल्याण शहर मे अन्नके समर्थन के लिए रयाली निकली थी उसमे लगभग १०० लोग थे ! कल्याण शहरकी आबादी ५ से १० लाख के बिचमे है यानि प्रतिशत के भाषामे ०.०२ प्रतिशत लोग रोडपर उतरेथे! दिल्ली के राम- लीला मैदान में १०-२० हजार लोग जमा हुए थे जो दिल्ली और आसपासके शहरोसे आये थे , जो की वहाकी आबादी १०० करोड़ के आसपास है , यानि ०.१ प्रतिशत लोग समर्थनमे वास्तव में उतरेथे! लिकिन मेडीयाने ऐसा माहोल खड़ा किया मानो पूरा देश आन्नके साथ खड़ा है ! हमारे लोग भी आन्नके विरोधमे रोडपर उतरेथे मगर उनको दिखाया ही नहीं गया! मिडिया में इतनी ताकद होती है की वह सच को झूट और झूट को सच कहिता है और आम जनताभी उनपर भरोसा कर लेती है! आज जो बी ही हम सिनेमा ,टी.व्ही.,नाटक ,नृत्य,संगीत देखते है उसमे हिंदुत्व ही हिंदुत्व भरा होता है! सभी भारत वासियों के दिमाग में बच्चोसे लेकर बुड्ढो तक हिंदुत्व ही ठूस ठूस कर भरा जाता है! ब्राम्हणी विचारोसे उन्हें प्रेरित किया जाता है! और बाबासाहब के विचारोसे कोसो मिल दूर किया जाता है! इस चक्र को हमें तोडना होगा!
डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकरजी के आन्दोलन में बाबासाहब के साथ कई कलाकार शामिल हुए थे ! जो बाबासाहब के विचारोंको आपनी कलाकी माध्यम से आम जनता तक पोहचाते थे! भीमराव कर्डक का जलसा (नाट्य- गायन) देखकर बाबासाहब बोले थे भीमराव का एक जलसा मेरे १० सभाके बराबर है! कलामे इतनी ताकद होती है की वह विचार और संस्कुतिको आम जनता तक ले जाकर उनका प्रबोधन करते है, उनको सुसंस्कृत बनाते है! समाज का उत्थान सांस्कृतिक प्रगतिसे ही होता है ! जो हमारेमे नहीं के बराबर है ! अभी हमें इस क्षेत्र की ओर ध्यान देना होगा!
महाराष्ट्र में हम 'बोधी नाट्य परिषद्' नमक एक संस्था चलाते है! इसका उद्देश है साहित्यिक और कलाके क्षेत्र में विकास करना ! इसमे लेखक, कवी, नाट्य, नृत्य, संगीत, गायन, चित्रकला, शिल्पकला, स्थापत्य कला जैसी कलाका उत्थान करना और इसके माध्यमसे समाजको सुसंस्कृत और बाबासाहब, बुद्ध के विचारोसे प्रेरित करना !
बाबासाहब कहिते है प्राचीन भारत की इतिहास में सिर्फ ब्राम्हण और बौद्ध संघर्ष है! यह संघर्ष आम लोंगों के सामने आना चाहिए! इससे लोग वाकिब होने चाहिए! यह संघर्ष नाटक द्वारा चित्रित करने के लिए मैंने १५ साल इस इतिहास का अध्ययन किया और 'एतं बुद्धान सासनं' नामक नाटक लिखा ! जिसमे चित्रित किया गया है की चक्रवर्ती सम्राट अशोक का राज्य कैसा था , और उनका आखरी वारिस बृहद्रथ को उसका ब्राम्हिन सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने छल कपट से किस तरह मारा , बौद्ध राज्य को ख़त्म करके ब्राम्हानी राज्य की स्थापना की, हजारो बौद्ध विहारे , स्तूप, नष्ट किये ,! हजारो बौद्ध भिक्कू की कत्ले की , बौद्ध भिक्कुके सर काटकर लाने वालोंको १०० कहापन ( उस वक्ता का चलन, सुवर्ण मुद्रा ) देने की घोषणा की ! बौद्ध राजा बृहद्रथ के ह्त्या के बाद भृगु की सहायतासे मनु स्मृति लिखी गई और तलवार की नौक पर अमल बजावणी की गई! यह नाटक मंचित करने के लिए मैंने ३ लाख रुपये खर्च भी किये मगर टिकेट निकाल कर लोग नाटक देखने नहीं आते है, नतीजा मुझे नाटक बंद करना पड़ा ! हर प्रयोग के लिए मुझे ३० हजार रुपये खर्च आता है ! हर प्रयोग मै खर्च नहीं कर सकता हूँ! आज बोधी नाट्य परिषद् के चार नाटक तैयार है ! 'व्याकरण'(धारण ग्रस्त , यानि नदीपार बांध बान्धनेके बाद किसान और आदिवाशी लोगोंकी समस्या का चित्रण) 'लंगर' ( अंध श्रद्धा ), 'तन मजोरी '
(बड़े कीसानोके खेत में काम करने वाले दलितों की समस्या ) 'तन-मजोरी' नाटक में नाना पाटेकर जैसें फ़िल्म अभिनेता था, दुसरेभी नाटक में फिल्मी अभिनेते थे इसके बावजूद हमारे लोग नाटक देखने नहीं आते थे ! कहिनेका मतलब है कलाके प्रति हमारी हमारी उदासीनता है ! महाराष्ट्र में हम १९८४ से दलित नाट्य समेलन में नाटक का मंचन करते आरहे है , पर महाराष्ट्र के बहार तो कुछ भी नहीं है ! याने हमारा सांस्कृतिक आन्दोलन नहीं के बराबर है! इस क्षेत्र में पैस और प्रतिष्टा है और साथ साथ समाजको सुसंस्कृत बनानेकी बड़ी जिम्मेदारी है ! हम राजकारण ,शिक्षा इस क्षेत्र में हमारा विकास आवस्य हुआ है मगर हम सांस्कृतिक क्षेत्र में हम साईं मैनेमे पिछड़े हुए है !इस क्षेत्र में हम आगे कब आयेंगे ?
बोधी नाट्य परिषद् की ओरसे हम कथा, कविता, अभिनय, नाट्य लेखन कार्यशाला लेते है , युवकोको प्रशिक्षित करते है! तो इस पत्रसे मेरे सभी भाई- बहिनोको आवाहन करता हूँ की आप भी इस मोहीममे हमारे साथ जुड़ जाओ ! कमसे काम टिकेट निकालकर हमारे सांस्कृतिक कार्यक्रम देखा करो और खुदकी संस्था निर्माण करके बुद्ध, बाबासाहबके विचारोंको कलाके माद्दयम से आम आदमी तक ले जाओ !इस क्षेत्र में आना हमारी जिम्मेदारी है , वर्ना वक्त हमें माफ नहीं करेगा !
सिर्फ उनके ही च्यानल , सिनेमा, गायन, नाटक रहेंगे तो छोटे आन्ना बड़े होते रहेंगे, और हमरे सचमुच बड़े आदमी परदे के पीछे रहेंगे! अभी हमारी सबकी जिम्मेदारी है इस सभी क्षेत्र को हमारे कब्जे में लेना होगा ! कमसे कम उसके ओर कदम बढ़ाना होगा!
आपके उत्तर की राहमे अल्प विराम;
जयभीम,
- Monik Akela (Sonu)
Contact author:- monik.akela@gmail.com
We have kept the Hindi as such by the author as it is computer generated Hindi, so please avoid mistakes.
'खुला पत्र'
सेवामे,
डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकरजीको ,
मानाने वाले सभी भाई-बहिनोको ,
सप्रेम जयभीम.
दस-पंधरह दिनोसे हम देखा रहे है की टी.व्ही. और आखबारोमे आन्ना और लोकपाल के शिवा दूसरा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है ! हर शहर मे अन्ना के समर्थन मे जो लोग उतरते है भले ही पांच-दस लोग क्यों न हो उन्हे ही दिखाया जाता है! आज हमारे कल्याण शहर मे अन्नके समर्थन के लिए रयाली निकली थी उसमे लगभग १०० लोग थे ! कल्याण शहरकी आबादी ५ से १० लाख के बिचमे है यानि प्रतिशत के भाषामे ०.०२ प्रतिशत लोग रोडपर उतरेथे! दिल्ली के राम- लीला मैदान में १०-२० हजार लोग जमा हुए थे जो दिल्ली और आसपासके शहरोसे आये थे , जो की वहाकी आबादी १०० करोड़ के आसपास है , यानि ०.१ प्रतिशत लोग समर्थनमे वास्तव में उतरेथे! लिकिन मेडीयाने ऐसा माहोल खड़ा किया मानो पूरा देश आन्नके साथ खड़ा है ! हमारे लोग भी आन्नके विरोधमे रोडपर उतरेथे मगर उनको दिखाया ही नहीं गया! मिडिया में इतनी ताकद होती है की वह सच को झूट और झूट को सच कहिता है और आम जनताभी उनपर भरोसा कर लेती है! आज जो बी ही हम सिनेमा ,टी.व्ही.,नाटक ,नृत्य,संगीत देखते है उसमे हिंदुत्व ही हिंदुत्व भरा होता है! सभी भारत वासियों के दिमाग में बच्चोसे लेकर बुड्ढो तक हिंदुत्व ही ठूस ठूस कर भरा जाता है! ब्राम्हणी विचारोसे उन्हें प्रेरित किया जाता है! और बाबासाहब के विचारोसे कोसो मिल दूर किया जाता है! इस चक्र को हमें तोडना होगा!
डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकरजी के आन्दोलन में बाबासाहब के साथ कई कलाकार शामिल हुए थे ! जो बाबासाहब के विचारोंको आपनी कलाकी माध्यम से आम जनता तक पोहचाते थे! भीमराव कर्डक का जलसा (नाट्य- गायन) देखकर बाबासाहब बोले थे भीमराव का एक जलसा मेरे १० सभाके बराबर है! कलामे इतनी ताकद होती है की वह विचार और संस्कुतिको आम जनता तक ले जाकर उनका प्रबोधन करते है, उनको सुसंस्कृत बनाते है! समाज का उत्थान सांस्कृतिक प्रगतिसे ही होता है ! जो हमारेमे नहीं के बराबर है ! अभी हमें इस क्षेत्र की ओर ध्यान देना होगा!
महाराष्ट्र में हम 'बोधी नाट्य परिषद्' नमक एक संस्था चलाते है! इसका उद्देश है साहित्यिक और कलाके क्षेत्र में विकास करना ! इसमे लेखक, कवी, नाट्य, नृत्य, संगीत, गायन, चित्रकला, शिल्पकला, स्थापत्य कला जैसी कलाका उत्थान करना और इसके माध्यमसे समाजको सुसंस्कृत और बाबासाहब, बुद्ध के विचारोसे प्रेरित करना !
बाबासाहब कहिते है प्राचीन भारत की इतिहास में सिर्फ ब्राम्हण और बौद्ध संघर्ष है! यह संघर्ष आम लोंगों के सामने आना चाहिए! इससे लोग वाकिब होने चाहिए! यह संघर्ष नाटक द्वारा चित्रित करने के लिए मैंने १५ साल इस इतिहास का अध्ययन किया और 'एतं बुद्धान सासनं' नामक नाटक लिखा ! जिसमे चित्रित किया गया है की चक्रवर्ती सम्राट अशोक का राज्य कैसा था , और उनका आखरी वारिस बृहद्रथ को उसका ब्राम्हिन सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने छल कपट से किस तरह मारा , बौद्ध राज्य को ख़त्म करके ब्राम्हानी राज्य की स्थापना की, हजारो बौद्ध विहारे , स्तूप, नष्ट किये ,! हजारो बौद्ध भिक्कू की कत्ले की , बौद्ध भिक्कुके सर काटकर लाने वालोंको १०० कहापन ( उस वक्ता का चलन, सुवर्ण मुद्रा ) देने की घोषणा की ! बौद्ध राजा बृहद्रथ के ह्त्या के बाद भृगु की सहायतासे मनु स्मृति लिखी गई और तलवार की नौक पर अमल बजावणी की गई! यह नाटक मंचित करने के लिए मैंने ३ लाख रुपये खर्च भी किये मगर टिकेट निकाल कर लोग नाटक देखने नहीं आते है, नतीजा मुझे नाटक बंद करना पड़ा ! हर प्रयोग के लिए मुझे ३० हजार रुपये खर्च आता है ! हर प्रयोग मै खर्च नहीं कर सकता हूँ! आज बोधी नाट्य परिषद् के चार नाटक तैयार है ! 'व्याकरण'(धारण ग्रस्त , यानि नदीपार बांध बान्धनेके बाद किसान और आदिवाशी लोगोंकी समस्या का चित्रण) 'लंगर' ( अंध श्रद्धा ), 'तन मजोरी '
(बड़े कीसानोके खेत में काम करने वाले दलितों की समस्या ) 'तन-मजोरी' नाटक में नाना पाटेकर जैसें फ़िल्म अभिनेता था, दुसरेभी नाटक में फिल्मी अभिनेते थे इसके बावजूद हमारे लोग नाटक देखने नहीं आते थे ! कहिनेका मतलब है कलाके प्रति हमारी हमारी उदासीनता है ! महाराष्ट्र में हम १९८४ से दलित नाट्य समेलन में नाटक का मंचन करते आरहे है , पर महाराष्ट्र के बहार तो कुछ भी नहीं है ! याने हमारा सांस्कृतिक आन्दोलन नहीं के बराबर है! इस क्षेत्र में पैस और प्रतिष्टा है और साथ साथ समाजको सुसंस्कृत बनानेकी बड़ी जिम्मेदारी है ! हम राजकारण ,शिक्षा इस क्षेत्र में हमारा विकास आवस्य हुआ है मगर हम सांस्कृतिक क्षेत्र में हम साईं मैनेमे पिछड़े हुए है !इस क्षेत्र में हम आगे कब आयेंगे ?
बोधी नाट्य परिषद् की ओरसे हम कथा, कविता, अभिनय, नाट्य लेखन कार्यशाला लेते है , युवकोको प्रशिक्षित करते है! तो इस पत्रसे मेरे सभी भाई- बहिनोको आवाहन करता हूँ की आप भी इस मोहीममे हमारे साथ जुड़ जाओ ! कमसे काम टिकेट निकालकर हमारे सांस्कृतिक कार्यक्रम देखा करो और खुदकी संस्था निर्माण करके बुद्ध, बाबासाहबके विचारोंको कलाके माद्दयम से आम आदमी तक ले जाओ !इस क्षेत्र में आना हमारी जिम्मेदारी है , वर्ना वक्त हमें माफ नहीं करेगा !
सिर्फ उनके ही च्यानल , सिनेमा, गायन, नाटक रहेंगे तो छोटे आन्ना बड़े होते रहेंगे, और हमरे सचमुच बड़े आदमी परदे के पीछे रहेंगे! अभी हमारी सबकी जिम्मेदारी है इस सभी क्षेत्र को हमारे कब्जे में लेना होगा ! कमसे कम उसके ओर कदम बढ़ाना होगा!
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Published by: Nikhil Sablania
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