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कैसे बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर ने तैयार की दलितों में से पहले गजेटेड अफसरों की फ़ौज
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कैसे बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर ने तैयार की दलितों में से पहले गजेटेड अफसरों की फ़ौज
ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में अछूतों (दलितों), हिन्दुओं, सीखो, मुसलमानों और ईसाईयों को गोलमेज सम्मलेन में प्रतिधित्व के अधिकार दिए गए जिसे 1935 के संविधान में रखा गया। उसके तहत मुसलमानों, सिखों और ईसाईयों को तो आरक्षण दिया गया परन्तु दलितों को तब भी वंचित रखा गया क्योंकि सरकार में तब भी अफसर बामण-बणिया थे और अपनी बामणवादी विकृत मानसिकता के कारण वह दलितों को उनको मिले अधिकारों से वंचित रखना चाहते थे। मुस्लमान, सिख, और ईसाई दलितों की तुलना में हर प्रकार से बहुत ताकतवर समूह थे सो उनके आरक्षण का कड़ाई से पालन किया जाता था और यहां तक कि उनका आरक्षण न भरा जाने पर उनके स्थानों को हिन्दुओं से भी नहीं भरा जाता था और यदि ऐसा होता तो यह समूह आंदोलन करते थे। पर बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर को इस बात की चिंता थी कि दलितों को प्रतिनिधित्व से वंचित रखा जा रहा था। सरकार ने केवल एक आदेश जारी किया पर उस पर काम तो बामण-बणिया सरकारी अधिकारीयों ने ही करना था और वह उसका पालन नहीं कर रहे थे। फिर 1943 में डॉ अम्बेडकर श्रम मंत्री बने। बनते ही उन्होंने अपनी पार्टी 'शेड्यूल कास्ट फेडरेशन' के भारत भर के दफ्तरों में यह सन्देश भिजवाया कि जो भी ग्रेजुएट (स्नातक) दलित युवक मिले उनको दिल्ली भेजा जाए। सारे भारत में खोज शुरू हो गई और बंगाल, आसाम, उड़ीसा, बिहार (झारखण्ड), तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र (गुजरात), मध्य प्रदेश (छत्तीसगढ़), राजस्थान, पंजाब (हरियाणा और हिमाचल प्रदेश), उत्तर प्रदेश (उत्तराखंड) और दिल्ली में जो भी शेड्यूल कास्ट के ग्रेजुएट मिले उन्हें बाबासाहेब ने अपने पास बुलवाया और उन्हें गजेटेड पोस्टों पर नियुक्त करवाया। उन्ही में से एक डी. संजीवया बाद में आँध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री, भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष और केंद्र में मंत्री बने। सैकड़ों वर्ष बाद अछूतों को देश का शासन करने के लिए शासक वर्ग का अंग बाबासाहेब ने इस प्रकार बनाया। यह था बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर का आश्चर्यजनक संघर्ष और चमत्कार।
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