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भारत की मीडिया का जातिवाद Bharat ki Media ka Jativaad

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भारत की मीडिया का जातिवाद Bharat ki Media ka Jativaad  Empty भारत की मीडिया का जातिवाद Bharat ki Media ka Jativaad

Post  nikhil_sablania Mon Feb 09, 2015 3:46 pm

Play Audio ऑडियो प्ले करें http://yourlisten.com/nikhil.sablania/bharat-ki-media-ka-jativaad

जातिवाद है और इसे कायम रखना है यह कहने की जरुरत नहीं है बल्कि यह भारत की मीडिया का राष्ट्रगान है।

आप में से बहुत से लोग वर्षों से मीडिया में यह देख, सुन या पढ़ रहे होंगे कि फलां-फलां राजनैतिक दल ने फलां-फलां व्यक्ति को ऊंचा पद जैसे मुख्यमंत्री का पद दिया है और वह व्यक्ति दलित, आदिवासी या पिछड़े (O.B.C.) वर्ग से है। इस पर मीडिया जीतोड़ मेहनत करके इस बात का प्रचार करने में लगती है कि ऐसा इसलिए किया जाता है जिससे कि उस वर्ग के वोट पा लिये जाएं। परन्तु सत्य यह भी है कि दलित, आदिवासी या पिछड़े समाज के व्यक्तियों को उच्च पद देना तो हाल-फिलहाल में ही शुरू हुआ है। इससे पहले कांग्रेस ने जब ऐसा किया था तब उसका मकसद डॉ भीमराव अम्बेडकर और बाद के उनके अनुयाईयों द्वारा चलाई जा रही पार्टियों को तोड़ना। पर यही बात मीडिया क्यों नहीं कहता था जब किसी ब्राह्मण, खत्री (क्षत्रिय) या बनिए को उच्च पद दिया गया। जब इन वर्गों के किसी व्यक्ति को उच्च पद मिले तो उसे कभी रब्बड़ स्टैम्प नहीं माना गया या उस व्यक्ति की काबलियत पर कभी प्रश्नचिन्ह वर्गीकृत राजनीति से प्रेरित होने का नहीं लगा। परन्तु जब वही संस्था किसी दलित, आदिवासी या पिछड़े को पद देती है तो उसे रब्बड़ स्टैम्प माना जाता है।

आज क्या किसी भी संस्थान को चलाना दलित, आदिवासी, या पिछड़े वर्ग की जनसंख्या के बिना हो सकता है? राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर.एस.एस.) हो, बजरंग दल हो, कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी या कम्युनिस्ट एवं अन्य क्षेत्रवादी पार्टियां और अब आम आदमी पार्टी, इन सभी संस्थानों में दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोग बहुत मात्रा में कार्यकर्ता की भूमिका निभाते हैं। परन्तु बहुत मुश्किल से इन वर्गों के लोगों को कोई पद इन जैसी संस्थानों में मिलता है। और यदि मिलता भी है तो मीडिया उसे रब्बड़ स्टैम्प या वोटरों को रिझाने के लिए ऐसा किया गया 'स्टंट' कह कर दुष्प्रचार करने लगती है। आखिर मीडिया के इस दुष्प्रचार का अर्थ क्या है?

इस प्रकार किया गया प्रचार भारत की मीडिया की जातिवादी मानसिकता सिद्ध करता है। एक तरफ तो उस व्यक्ति पर निशाना साधा जाता है जो कि उच्च पद पर बैठाया गया और दूसरे उस संस्थान को भी यह सचेत कर दिया जाता है कि यदि उसने उस व्यक्ति पर नियंत्रण नहीं रखा तो उस संस्थान को भी मीडिया नहीं बख्शेगी। यह "नियंत्रण" क्या है जो मीडिया चाहती है? यह नियंत्रण है कि दलित, आदिवासी या पिछड़े समाज के व्यक्ति पर यह नियंत्रण रखा जाए कि कहीं वह अपने वर्गों के लोगों के उत्थान के कार्य तो नहीं करने लगे। अर्थात, व्यक्ति भले ही निम्नन वर्ग से हो, पर करे वह वही जो उसे पद पर बिठानेवाली संस्थान चाहती है। अर्थात ऊँचे वर्गवालों या कहें कि ऊँची जाती वालों के मुद्दों को ही देखा जाए और निम्नन वर्गों या कहें निचली जाती के मुद्दों को दरकिनार कर दिया जाए। अर्थात भारत की जातिवादी व्यवस्था को ज्यों-का-त्यों रखा जाए। और जातिवादी व्यवस्था को स्थिर रखती है भारत की मीडिया। मीडिया अर्थात टीवी, अखबार, रेडियो आदि।

तो इस प्रकार जातिवाद को न सिर्फ मीडिया द्वारा जीवित ही रखा जाता है बल्कि मीडिया उसे और खाद और पानी भी देती है और साथ ही उसे सुरक्षित भी रखती है। कोई दो राय नहीं कि भारत में मीडिया भी इन्हीं वर्गों के लोगों द्वारा चलाई जा रही हैं इसलिए उनकी भाषा से लेकर उनके द्वारा तैयार किए गए कार्यक्रम या लेख तब, सब ही जातिवादी मानसिकता से तैयार होते हैं। मीडिया में काम करनेवाले भी उन्हीं घरों से आते हैं जहाँ जाती देख कर रिश्ते तय होते हैं और जो हज़ारों सालों से जातिगत तौर पर बिखरे पड़े है। उन घरों के बच्चे इससे पहले कि स्कूल जाएं जातिवाद की शिक्षा ले लेतेे हैं, और वह जाते भी अधिकांश्तर उन्हीं स्कूलों में हैं जहाँ उन्हीं के वर्गों के अधिकांश्तर बच्चे आते हैं या जो उन्हीं के वर्गों के लोगों द्वारा चलाए जा रहे हैं। और यहाँ तक कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का और सरकारी स्कूलों का पाठ्यक्रम तैयार करने से लेकर शिक्षा की नीति तैयार करने तक के अधिकांश्तर कार्य इन्हीं जातिवादी मानसिकता से विकृत वर्गों द्वारा किए जाते हैं। और फिर आगे कालेज की शिक्षा हो या नौकरियाँ, हर संस्थान ऐसे ही लोगों से भरी है और मीडिया भी इससे अछूती नहीं है।

सो भारत की मीडिया इस प्रकार जातिवाद को न केवल ज़िंदा ही रखती है बल्कि लोगों को इसका एहसास भी नहीं होता। जातिवाद है और इसे कायम रखना है यह कहने की जरुरत नहीं है बल्कि यह भारत की मीडिया का राष्ट्रगान है।
- निखिल सबलानिया

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4. मेरे जीवन के कुछ अनुभव : संतराम बी. ए.।
5. दलित बनाम पिछड़ा वर्ग।
6. अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और डॉ भीमराव अम्बेडकर।
7. ओबीसी साहित्य विमर्श।
8. गुलामगिरी।
9. किसान का कोड़ा।
10. पेरियार रामास्वामी नायकर जीवन दर्शन।
11. दाम बांधो या गद्दी छोड़ो।
12. ब्राह्मणवाद से हर कदम पर लड़ो।
13. जाट जाती प्रच्छन्न बौद्ध है।
14. समाजवाद बनाम पिछड़ा वर्ग।
15. योग्यता मेरी जूती।
16. बहुजन विरोधी भारतीय राजनीती का काला इतिहास।
17. तेली समाज इतिहास और संस्कृति।
18. शूद्रों की खोज।
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24. प्रथम शूद्र चक्रवर्ती सम्राट महापदम नन्द।
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