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लोगों को भ्रमित कर रही हैं भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी
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लोगों को भ्रमित कर रही हैं भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी
लोक सभा चुनावों में पंद्रह दिन शेष बचे हैं और मीडिया द्वारा प्रचारित तीन बड़ी पार्टियों के मेनोफेस्टो (नीति-घोषणा पत्र) तक नहीं आए हैं। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने तो अपने-अपने मेनोफेस्टो की वेबसाईटें तक बना रखी हैं पर 2014 के लोक सभा चुनावों में यह किन मुद्दों पर सरकारें बनाने का दावा कर रहे हैं यह अभी तक लोगों को नहीं बता पाए हैं। वहीं आम आदमी पार्टी अपना आकार बढ़ाने में तो काफी सक्रिय जान पड़ती है पर देश के सामने किन मुद्दों पर लोगों का समर्थन चाह रही हैं यह अभी तक नहीं बता पाई है।
काँग्रेस का हाल है कि मुल्ला की दौर मस्जिद तक और काँग्रेसी की दौड़ गांधी परिवार तक। कल टी. वी. में राहुल गांधी कह रहे थे कि इस बार वह कुछ दावे नहीं करना चाहते। क्या विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में सबसे अधिक समय शासन करनेवाली पार्टी के पास आज लोगों को कुछ देने को नहीं बचा है? क्या बेरोजगारी, भुखमरी, पिछड़ी शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, जातिगत असमानता और धार्मिक अलगाव अदि की सारी समस्यांए हल हो गई हैं जो इस पार्टी को यह लग रहा है कि आगे का कुछ नहीं कह सकते? चलो यह मान भी लिया जाए कि आनेवाले भविष्य के बारे में कहना मुश्किल है, पर यह तर्क एक निहायती निम्न प्रकार का तर्क है जो मात्र यही दिखाता है कि ऐसा कहनेवाले को पता ही नहीं है कि उसे क्या करना है। इस बात को भी नज़रअंदाज किया जा सकता है पर इस बारे में इस पार्टी का क्या कहना है कि जो भूमंडलीकरण व मुक्त व्यापार के नाम पर देश के अधिकांशतर राष्ट्रीय उद्योगों का निजीकरण काँग्रेस ने किया, उन उद्योगों का काँग्रेस राष्ट्रीयकरण फिर से करेगी या नहीं? क्या काँग्रेस निजीकरण को अपनी फहरिस्त में रखेगी? यह मनमोहन सिंह की मुक्त व्यापार की नीति का ही परिणाम है कि आज देश में लोग खाने को मोहताज हो गए हैं। न मशीनीकरण हुआ, न तकनिकी विकास हुआ और कंपनियों को मुनाफा पहुंचाने के लिए खेती भी भूमंडलीकरण और मुक्त व्यापार की भेंट चढ़ गई। आज ऐ. सी., कार, कंप्यूटर है पर खाने को फल नहीं, दालों से ले कर घी, दूद्ध, मक्खन और माँस तक के दाम लोगों की पहुँच से बाहर हो गए हैं। लोग मेट्रों रेलवे में सफ़र करें, करों में घूमें या ए. सी. में बैठें, पर खाने को अच्छा भोजन तो चाहिए। पहले तो कई वर्षों तक मनमोहन सरकार ऊँची विकास दर का छलावा दिखाती रही पर यह नहीं बताया कि जिन घरेलू उद्योगों का खात्मा विदेशी कंपनियों और निजीकरण ने कर दिया उससे कितने घर बेरोजगार हो गए। यही हाल भारतीय जनता पार्टी की सरकार में भी रहा। उसकी नीतियां शासन में आने से पहले इन मुद्दों पर विरोधी थी पर शासन में आने के बाद इनके पक्ष में और दृढ़ ही हुई।
भारतीय जनता पार्टी सवदेशी आंदोलन चला कर शासन करने आई पर उसने कितना सवदेशी काम किया? देश को विदेशी कंपनियों को बेचने में उसने काँग्रेस से भी ज्यादा दृढ़ भूमिका निभाई। राम लल्ला का मंदिर बनाने का दिखावा करनेवाली इस पार्टी ने तो राम के देस को ईसा के देशवालों को खूब बेचा और सोनिया गांधी के ईसाई होने को लेकर उस पर वेदेशी होने का दावा ठोकते रहे। कितनी देशी कम्पनियां इन्होंने खड़ी की, कितना तकनिकी विकास किया और कितना व्यापार बढ़ाया? पिछले चुनावों के दौरान आडवाणी खुद तब राम लल्ला की जगह कृष्ण कन्हैया बन कर हाईटेक रथ पर घूमें और (ईसाई) विदेशीयों के पैसे से ऐशों आराम में चुनाव प्रचार किया। आज वही बात मोदी दोहरा रहा है। मोदी के भाषणों का आंकलन किया जाए तो उसने एक बार भी भूमंडलीकरण और निजीकरण के खिलाफ अपनी ज़ुबान नहीं खोली है। बल्कि हमेशा पूंजीवादी जीवन व्यवस्था की वकालत करता हुआ वह ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री बनने से पहले ही लोगों को पूंजीवादी सभ्यता का अभ्यस्त कराना चाहता हो। 2008 में मैं गुजरात गया था। वहाँ पता चला कि मछुआरों का सारा कारोबार पानी में उस प्रदूषण से खात्में पर पहुँच गया जो उन फेक्ट्रियों से निकला था जो भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने विकास के नाम पर गुजरात में लगाईं। और विकास ऐसा हुआ कि जो मछुआरे समुद्र पर राज करते हुए सोने के आभूषणों से लदे रहते थे वह प्राईवेट फेक्ट्रियों में चार हज़ार रूपये मासिक में निम्न स्तर की मज़दूरी करने को विवश हो गए। जिस नदी का पानी जो कभी मीठा था तब तक प्रदूषण की सड़ांध से उसके पास खड़ा होना भी दूभर हो गया था। असल में असली तस्वीर कभी बाहर नहीं निकल पाती और ऊपर से भारतीय मीडिया खुद पूंजीवाद में पड़ कर रह गयी है जिसे अपने देश और उसकी समस्याओं से कोई वास्ता नहीं।
आम आदमी पार्टी का दिल्ली में जो हश्र हुआ उससे दो बातें सामने आई हैं। एक तो यह कि इनमें राजनितिक स्थिरता नहीं है और दूसरी यह कि अब लोग इन्हें नहीं पूछ रहे। ऐसे में पार्टी के पास एक मौक़ा था कि वह अपने उद्देश्यों का सही मूल्यांकन करती और उन्हें लोगों तक पहुंचाती। पर पार्टी विस्तारवाद में पड़ कर उद्देश्यों से भटकी है। फिर भी यदि अरविन्द केजरीवाल के टी.वी. साक्षात्कारों का आंकलन करें तो वह कभी भी भूमंडलीकरण, मुक्त व्यापार और निजीकरण के विरुद्ध बोलते नज़र नहीं आते। वह बिजली कंपनियों की बुराई तो करते हैं और अम्बानी की बुराई भी करते हैं, पर साथ में यह भी जोड़ देते हैं कि नई कम्पनियां आ जाऐंगी। पैसे की गणना में तो वह इतने दक्ष हैं कि हर बात को पैसों से तोलते हैं। चाहे मुद्दा बिजली की सब्सिडी (माली मदद) का हो या चुनाव दुबारा कराने का, उन्में एक राजनितिक और सामाजिक संवेदना और दूरदर्शिता नज़र नहीं आती। हो सकता हो कि कोई बैगैर राजनितिक पृष्ठभूमि का प्रतिनिधि बने पर फिर भी उसकी मानसिक क्रियाशैली जांचना भी अनिवार्य है। जिस प्रकार अरविन्द केजरीवाल की पूंजी से राष्ट्र को आंकने की आदत है उससे तो उनकी मानसिक क्रिया मात्र पूंजी के ही उतार चढ़ाव की ज्यादा लगती है या कहें कि वह पूंजीवादी सोचवाले हैं। पूंजीवादी सोचवाले की प्राथमिकता व दिशा पूंजीपतियों को लाभ पहुंचना होता है और जो लाभ में थोड़ा शेष रह जाता है उसका कुछ हिसा लोगों में इसलिए बाँट दिया जाता है जिससे कि वह पूंजीपतियों के अर्थतंत्र को, उनकी फेक्ट्रियों और उनके बाज़ारों आदि को चला सकें। इन सबका एक ही निष्कर्ष है कि आम आदमी पार्टी की सरकार भी मनमोहन सिंह की वही नीतियां चालू रखने के पक्ष में है जिनकी वजह से देश आज भुखमरी के हाल पर है। आलीशान शादियों में मुफ्त का भोजन करने वाले, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा पांच सितारा होटलों का खाना मुफ्त में खाने वाले और मध्यम वर्गीय लोगों को यह बातें शायद अटपटी लगे पर भरात में ऐसे भूखों की कमी नहीं है जिन्हें ठीक से भोजन नहीं मिल पाता। काँग्रेस पार्टी जिस चांवल व गेहूं को आज कम कीमत पर देने की बात कर रही है वह ऐसा है कि जिसे खाना लोग पसंद नहीं करते या जो सड़ रहा है। और यदि अच्छी खाद्य सामग्री दे भी दे तो भी काँग्रेस भूमंडलीकरण, मुक्त व्यापार और निजीकरण को देश से हटाने की नीति पर कोई बात नहीं कर रही।
भूमंडलीकरण, मुक्त व्यापार और निजीकरण ऐसे दैत्य है जो कि कई राष्ट्रों को निगल रहे हैं। विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष खुद यह मान चुका है कि मुक्त बाज़ार से विकासशील देशों का भला होने की जगह बुरा जरूर हुआ है। पर यह तीनों पार्टियाँ ही इन मुद्दों पर चुप है और सिर्फ प्रचार, प्रचार और प्रचार से लोगों को भ्रमित कर रही हैं।
प्रिया मित्रों, मैं नई दिल्ली लोक सभा से एक स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में चुनावों में हिस्सा ले रहा हूँ। नई दिल्ली लोक सभा क्षेत्र में यह दस विधान सभा क्षेत्र आते हैं: करोल बाग, पटेल नगर, मोती नगर, राजेन्द्र नगर, नई दिल्ली, कस्तूरबा नगर, आर. के. पुरम, दिल्ली केंट और ग्रेटर कैलाश और यह मतदान क्षेत्र खिड़की एक्सटेंशन से पूर्वी पंजाबी बाग तक है। मुझे आपसे संवाद करना है और अपने विचार रखने हैं। मेरा उद्देश्य आपके वोट पाना नहीं बल्कि आपको शिक्षित करना है। मैंने अपने विचार कुछ रखे हैं जिससे कि आप जान सके कि मेरा पक्ष किस दिशा में भविष्य में जाएगा। इन चुनावों के बाद मैं नई पार्टी का गठन भी करूंगा जिसका उद्देश्य मात्र वोट पाना न हो कर सामाजिक और राजनैतिक चेतना लोगों में भरना होगा। यदि आपको मेरे विचार पसंद आएं तो इस लेख को अपने मित्रों के साथ साझा जरुर कीजियेगा। आप मुझे अपने क्षेत्र में भी बुला सकते हैं। मेरा मोबाईल नम्बर है :8527533051 निवास स्थान: गोल मार्किट, नई दिल्ली। इस फेसबुक पेज को लाईक करें https://www.facebook.com/ndloksabha
- आपका अपना 'निखिल सबलानिया'
काँग्रेस का हाल है कि मुल्ला की दौर मस्जिद तक और काँग्रेसी की दौड़ गांधी परिवार तक। कल टी. वी. में राहुल गांधी कह रहे थे कि इस बार वह कुछ दावे नहीं करना चाहते। क्या विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में सबसे अधिक समय शासन करनेवाली पार्टी के पास आज लोगों को कुछ देने को नहीं बचा है? क्या बेरोजगारी, भुखमरी, पिछड़ी शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, जातिगत असमानता और धार्मिक अलगाव अदि की सारी समस्यांए हल हो गई हैं जो इस पार्टी को यह लग रहा है कि आगे का कुछ नहीं कह सकते? चलो यह मान भी लिया जाए कि आनेवाले भविष्य के बारे में कहना मुश्किल है, पर यह तर्क एक निहायती निम्न प्रकार का तर्क है जो मात्र यही दिखाता है कि ऐसा कहनेवाले को पता ही नहीं है कि उसे क्या करना है। इस बात को भी नज़रअंदाज किया जा सकता है पर इस बारे में इस पार्टी का क्या कहना है कि जो भूमंडलीकरण व मुक्त व्यापार के नाम पर देश के अधिकांशतर राष्ट्रीय उद्योगों का निजीकरण काँग्रेस ने किया, उन उद्योगों का काँग्रेस राष्ट्रीयकरण फिर से करेगी या नहीं? क्या काँग्रेस निजीकरण को अपनी फहरिस्त में रखेगी? यह मनमोहन सिंह की मुक्त व्यापार की नीति का ही परिणाम है कि आज देश में लोग खाने को मोहताज हो गए हैं। न मशीनीकरण हुआ, न तकनिकी विकास हुआ और कंपनियों को मुनाफा पहुंचाने के लिए खेती भी भूमंडलीकरण और मुक्त व्यापार की भेंट चढ़ गई। आज ऐ. सी., कार, कंप्यूटर है पर खाने को फल नहीं, दालों से ले कर घी, दूद्ध, मक्खन और माँस तक के दाम लोगों की पहुँच से बाहर हो गए हैं। लोग मेट्रों रेलवे में सफ़र करें, करों में घूमें या ए. सी. में बैठें, पर खाने को अच्छा भोजन तो चाहिए। पहले तो कई वर्षों तक मनमोहन सरकार ऊँची विकास दर का छलावा दिखाती रही पर यह नहीं बताया कि जिन घरेलू उद्योगों का खात्मा विदेशी कंपनियों और निजीकरण ने कर दिया उससे कितने घर बेरोजगार हो गए। यही हाल भारतीय जनता पार्टी की सरकार में भी रहा। उसकी नीतियां शासन में आने से पहले इन मुद्दों पर विरोधी थी पर शासन में आने के बाद इनके पक्ष में और दृढ़ ही हुई।
भारतीय जनता पार्टी सवदेशी आंदोलन चला कर शासन करने आई पर उसने कितना सवदेशी काम किया? देश को विदेशी कंपनियों को बेचने में उसने काँग्रेस से भी ज्यादा दृढ़ भूमिका निभाई। राम लल्ला का मंदिर बनाने का दिखावा करनेवाली इस पार्टी ने तो राम के देस को ईसा के देशवालों को खूब बेचा और सोनिया गांधी के ईसाई होने को लेकर उस पर वेदेशी होने का दावा ठोकते रहे। कितनी देशी कम्पनियां इन्होंने खड़ी की, कितना तकनिकी विकास किया और कितना व्यापार बढ़ाया? पिछले चुनावों के दौरान आडवाणी खुद तब राम लल्ला की जगह कृष्ण कन्हैया बन कर हाईटेक रथ पर घूमें और (ईसाई) विदेशीयों के पैसे से ऐशों आराम में चुनाव प्रचार किया। आज वही बात मोदी दोहरा रहा है। मोदी के भाषणों का आंकलन किया जाए तो उसने एक बार भी भूमंडलीकरण और निजीकरण के खिलाफ अपनी ज़ुबान नहीं खोली है। बल्कि हमेशा पूंजीवादी जीवन व्यवस्था की वकालत करता हुआ वह ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री बनने से पहले ही लोगों को पूंजीवादी सभ्यता का अभ्यस्त कराना चाहता हो। 2008 में मैं गुजरात गया था। वहाँ पता चला कि मछुआरों का सारा कारोबार पानी में उस प्रदूषण से खात्में पर पहुँच गया जो उन फेक्ट्रियों से निकला था जो भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने विकास के नाम पर गुजरात में लगाईं। और विकास ऐसा हुआ कि जो मछुआरे समुद्र पर राज करते हुए सोने के आभूषणों से लदे रहते थे वह प्राईवेट फेक्ट्रियों में चार हज़ार रूपये मासिक में निम्न स्तर की मज़दूरी करने को विवश हो गए। जिस नदी का पानी जो कभी मीठा था तब तक प्रदूषण की सड़ांध से उसके पास खड़ा होना भी दूभर हो गया था। असल में असली तस्वीर कभी बाहर नहीं निकल पाती और ऊपर से भारतीय मीडिया खुद पूंजीवाद में पड़ कर रह गयी है जिसे अपने देश और उसकी समस्याओं से कोई वास्ता नहीं।
आम आदमी पार्टी का दिल्ली में जो हश्र हुआ उससे दो बातें सामने आई हैं। एक तो यह कि इनमें राजनितिक स्थिरता नहीं है और दूसरी यह कि अब लोग इन्हें नहीं पूछ रहे। ऐसे में पार्टी के पास एक मौक़ा था कि वह अपने उद्देश्यों का सही मूल्यांकन करती और उन्हें लोगों तक पहुंचाती। पर पार्टी विस्तारवाद में पड़ कर उद्देश्यों से भटकी है। फिर भी यदि अरविन्द केजरीवाल के टी.वी. साक्षात्कारों का आंकलन करें तो वह कभी भी भूमंडलीकरण, मुक्त व्यापार और निजीकरण के विरुद्ध बोलते नज़र नहीं आते। वह बिजली कंपनियों की बुराई तो करते हैं और अम्बानी की बुराई भी करते हैं, पर साथ में यह भी जोड़ देते हैं कि नई कम्पनियां आ जाऐंगी। पैसे की गणना में तो वह इतने दक्ष हैं कि हर बात को पैसों से तोलते हैं। चाहे मुद्दा बिजली की सब्सिडी (माली मदद) का हो या चुनाव दुबारा कराने का, उन्में एक राजनितिक और सामाजिक संवेदना और दूरदर्शिता नज़र नहीं आती। हो सकता हो कि कोई बैगैर राजनितिक पृष्ठभूमि का प्रतिनिधि बने पर फिर भी उसकी मानसिक क्रियाशैली जांचना भी अनिवार्य है। जिस प्रकार अरविन्द केजरीवाल की पूंजी से राष्ट्र को आंकने की आदत है उससे तो उनकी मानसिक क्रिया मात्र पूंजी के ही उतार चढ़ाव की ज्यादा लगती है या कहें कि वह पूंजीवादी सोचवाले हैं। पूंजीवादी सोचवाले की प्राथमिकता व दिशा पूंजीपतियों को लाभ पहुंचना होता है और जो लाभ में थोड़ा शेष रह जाता है उसका कुछ हिसा लोगों में इसलिए बाँट दिया जाता है जिससे कि वह पूंजीपतियों के अर्थतंत्र को, उनकी फेक्ट्रियों और उनके बाज़ारों आदि को चला सकें। इन सबका एक ही निष्कर्ष है कि आम आदमी पार्टी की सरकार भी मनमोहन सिंह की वही नीतियां चालू रखने के पक्ष में है जिनकी वजह से देश आज भुखमरी के हाल पर है। आलीशान शादियों में मुफ्त का भोजन करने वाले, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा पांच सितारा होटलों का खाना मुफ्त में खाने वाले और मध्यम वर्गीय लोगों को यह बातें शायद अटपटी लगे पर भरात में ऐसे भूखों की कमी नहीं है जिन्हें ठीक से भोजन नहीं मिल पाता। काँग्रेस पार्टी जिस चांवल व गेहूं को आज कम कीमत पर देने की बात कर रही है वह ऐसा है कि जिसे खाना लोग पसंद नहीं करते या जो सड़ रहा है। और यदि अच्छी खाद्य सामग्री दे भी दे तो भी काँग्रेस भूमंडलीकरण, मुक्त व्यापार और निजीकरण को देश से हटाने की नीति पर कोई बात नहीं कर रही।
भूमंडलीकरण, मुक्त व्यापार और निजीकरण ऐसे दैत्य है जो कि कई राष्ट्रों को निगल रहे हैं। विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष खुद यह मान चुका है कि मुक्त बाज़ार से विकासशील देशों का भला होने की जगह बुरा जरूर हुआ है। पर यह तीनों पार्टियाँ ही इन मुद्दों पर चुप है और सिर्फ प्रचार, प्रचार और प्रचार से लोगों को भ्रमित कर रही हैं।
प्रिया मित्रों, मैं नई दिल्ली लोक सभा से एक स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में चुनावों में हिस्सा ले रहा हूँ। नई दिल्ली लोक सभा क्षेत्र में यह दस विधान सभा क्षेत्र आते हैं: करोल बाग, पटेल नगर, मोती नगर, राजेन्द्र नगर, नई दिल्ली, कस्तूरबा नगर, आर. के. पुरम, दिल्ली केंट और ग्रेटर कैलाश और यह मतदान क्षेत्र खिड़की एक्सटेंशन से पूर्वी पंजाबी बाग तक है। मुझे आपसे संवाद करना है और अपने विचार रखने हैं। मेरा उद्देश्य आपके वोट पाना नहीं बल्कि आपको शिक्षित करना है। मैंने अपने विचार कुछ रखे हैं जिससे कि आप जान सके कि मेरा पक्ष किस दिशा में भविष्य में जाएगा। इन चुनावों के बाद मैं नई पार्टी का गठन भी करूंगा जिसका उद्देश्य मात्र वोट पाना न हो कर सामाजिक और राजनैतिक चेतना लोगों में भरना होगा। यदि आपको मेरे विचार पसंद आएं तो इस लेख को अपने मित्रों के साथ साझा जरुर कीजियेगा। आप मुझे अपने क्षेत्र में भी बुला सकते हैं। मेरा मोबाईल नम्बर है :8527533051 निवास स्थान: गोल मार्किट, नई दिल्ली। इस फेसबुक पेज को लाईक करें https://www.facebook.com/ndloksabha
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