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क्या बाबा साहेब के जीवन का उद्देश्य सरकारी नौकरी पाना था ?
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क्या बाबा साहेब के जीवन का उद्देश्य सरकारी नौकरी पाना था ?
भारत का वह बड़ा तबका जिसके लिए डॉ आंबेडकर ने अपनी जिंदगी लगाई वह आज भी न केवल जाती के खेमों में बंटा हुआ है, बल्कि राजनैतिक खेमों में भी बंट गया है। जाती के खेमों को तोड़ना तो बहुत मुश्किल कार्य है, उधर राजनैतिक पार्टियों के खेमों में बंटने के बाद तो और भी अनर्थ हो गया है। क्या कोई सामाजिक कार्य हो रहे हैं ? क्या जातिगत ढांचा टूट रहा है? क्या आर्थिक स्थिति और आर्थिक व्यवस्था में परिवर्तन आ रहा है? चार हीरो अपने को बड़े उद्योगपति बता कर समाज की स्थिति को अपने फायदे के लिए औरों की नज़रों में गुमराह कर रहे हैं। वहीं राजनैतिक खेमों का हाल है कि एक टूटता नहीं और दूसरा लपकने के लिए तैयार है। एक और स्वार्थी तबका है, जो सरकारी नौकरी और नौकरियों में तरक्की का लालची है? क्या बाबा साहेब के जीवन का उद्देश्य सरकारी नौकरी पाना था या नौकरी में तरक्की? उन्होंने तो अपने सिद्धांतों के लिए मंत्री पद को भी तिलांजलि दे कर बौद्ध धम्म की और रुख किया। उधर जो खुद को उनका बौद्ध धम्म का उत्तराधिकारी बताते हैं, उन्होंने भी धम्म को उलटने-पलटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मैं जरूरी मुद्दे पर आता हूँ और वह है आर्थिक तरक्की। वह आज भी पिछड़ी है। न अलग-अलग समाज कोई एक समाज एक हुआ, न मजबूत हुआ और न ही सही दिशा में है। जरुरत है कि युवा किसी पार्टी, या संगठन का सहारा न लेकर खुद अपने घर से बदलाव शुरू करें। तोड़ दें जाती की जंजीरें। निश्चय करें कि हम नौकरी लेनेवाले नहीं बल्कि नौकरी देनेवाले बनें। बौद्ध धम्म को अपनाएं पर किसी धम्म को बुरा न कहें और सहिषुणता के साथ और करुणा के साथ धम्म को आगे बढ़ाएं। मुझे यही आखरी उपाय नजर आता है। भगवन बुद्ध ने कहा की अत दीपो भव, कि अपना दीपक आप खुद बनो। और डॉ आंबेडकर की तरह सिद्धांतों के पक्के बने , नौकरी या किसी लालच के लिए अपने सिद्धांतों की तिलांजलि न दें।
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